________________
६६ अतुला तुला
को आकांक्षा की दृष्टि से देखनेवाले व्यक्ति यमराज के मेहमान बन जाते। एक दिन आज का है कि यह सारा स्थल हिंस्र पशुओं से व्याप्त है। यह ठीक ही है कि रंगभूमि में नाचनेवाला कौन प्राणी वक्रता (परिवर्तन) का अनुभव नहीं करता?
स्थाने स्थाने शीर्णकायाः शतघ्न्यः, स्फीतं मृत्योराननं संस्पृशन्त्यः । नातिक्रान्तो मारकस्यापि मृत्यु
रित्याख्यातुं व्याददानाः स्वमास्यम् ॥१७॥ स्थान-स्थान पर मौत की तरह मुंह फाडे तोपें पड़ी थीं। उनका फटा हुआ मंह यह कह रहा था कि मारने वाले की भी मृत्यु होती है ।
गुप्ता गंगा पुष्कराढ्यास्तटाकाः, स्मारं स्मारं प्राक्तनं वैभवं स्वम् । कुं सिंचन्तो वाष्पबिन्दुप्रवाहै
नों विश्रान्ता विद्युदुत्प्लावियन्त्रः ॥१८॥ वहां एक स्थान पर गुप्त गंगा थी। वहां के तालाब कमलों से भरे-पूरे थे। सरकार ने उस (गुप्त गंगा) को खाली करने के लिए विद्युत् के यन्त्र लगाए, फिर भी वह खाली नहीं हुई। कवि की कल्पना में उसका हेतु यह है कि अपने पुराने वैभव को याद करती हुई वह गंगा आंसुओं के प्रवाह से भूमि को आर्द्र कर रही है, इसलिए उसका जल सूख नहीं रहा है।
क्रूरैर्मेधैर्भूधराणां शरीरे, वारां पातैरूजितानि क्षतानि । वर्षान्तेपि न्यक्षिपन्त्यम्बु तज्ज,
के के मुक्ता हा! प्रतीकारबुद्धया ।।१६।। क्रूर मेघों ने पानी की अपनी धाराओं से पर्वतों के शरीर पर अनेक घाव कर डाले थे। वर्षा ऋतु के अन्त हो जाने पर भी पर्वत निर्झर के मिष से उस पानी को नीचे फेंक रहे थे। इस संसार में ऐसे कौन प्राणी हैं जो प्रतिकार की भावना से मुक्त हों?
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org