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६० अतुला तुला
एक दिन संस्कृत महाविद्यालय में सार्वजनिक प्रवचन रखा गया था। इधर बादलों ने सघन जलधाराओं से स्पर्धा प्रारम्भ की। किन्तु आचार्यश्री का प्रवचन सुनने के इच्छुक मनुष्यों की गति का वेग उन धाराओं को भी बाधित करने लगा। स्पर्धा स्पर्धा को जन्म देती है, यह उसी के उद्भव का आन्तरिक नियम है।
(वि० २००६ पौष)
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