SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 61
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ निकषरेखा ३९ प्रकीर्णम् न दृष्टोऽध्वा ध्वान्ते वपुरिदमपि स्थूलमतुलं, तुषारस्पर्शनावयवजडभावं गतवती । प्रमीला निद्राणे सति जगति लब्धाभयपदा, निशा मन्दं मन्दं व्रजति यदि पौषे किमधिकम् ? ॥१८॥ पौष के महीने में रात धीरे-धीरे चलती (बीतती ) है तो इसमें आश्चर्य ही क्या है ? वह सघन अंधकार में अपना मार्ग नहीं देख पाती और उसका शरीर भी स्थूल होता है (रातें बहुत बड़ी होती हैं)। शीत के स्पर्श से उसके सारे अवयव जड़ हो जाते हैं। सारे लोग नींद में सोए रहते हैं और तब वह रात बिना किसी भय के धीरे-धीरे चलती है। रे रे खर! तूष्णीं -भव, दृष्टं तवककौशलम् । दुर्लभा वाग्मिता चेत्ते, कौं किं सुलभौ नृणाम् ॥१६॥ एक बार गधा सामने से रेंकता हुआ आया। तब कवि ने कहा-गधे ! मौन हो जा। मैंने तेरे बोलने का कौशल देख लिया । यदि तेरी यह वाचालता दुर्लभ है तो क्या मनुष्यों के कान सुलभ हैं ? अन्धोऽसि तेन जगता न विगर्हणीयस्तेनैव विश्वभुवनेऽसि यदन्धकार !। दोषोऽपि नापरजनान् परिपीडयन् ही, कारुण्यभाजनमलं सुजनाशयेषु ॥२०॥ हे अन्धकार ! तुम अन्धे हो इसीलिए सारे संसार में गर्हणीय नहीं हो । जो दोष दूसरों को पीड़ित नहीं करता, वह सुजन व्यक्तियों के लिए करुणा का पात्र होता है। निन्दामहति सोऽर्थवादलुभितः श्लाघा न तं लिप्सते, श्लाघ्यस्तत्र विरक्तिमानऽह कियत् कष्टा सतीनां गतिः । निन्दां दुर्जनका मितां स्वविषयां ज्ञीप्सेद् मुदा सज्जनो, दुष्टानां खलु जीवितं सुमहतामेकाङ्गिपक्षे स्थिरम् ॥२१॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003063
Book TitleAtula Tula
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1976
Total Pages242
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy