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३६ अतुला तुला मदान्ध हो जाते हैं । जहा आववक नहीं होता वहां तुम्हारी एक भी शक्ति सफल नहीं होती। क्षीरोदतनये !
त्वयि, कटुताऽस्ति.न वेति वेत्ति तव रसिकः । व्यक्तं पश्याम्यस्मिन्,
नो जाने तेऽस्य वा दोषः ॥१०॥ लक्ष्मी ! तुम्हारे में कटुता है या नहीं, यह तुम्हारा रसिक व्यक्ति ही जान सकता है। मैं स्पष्ट देखता हूं कि तुम्हारे रसिक में कटुता होती है । मुझे नहीं पता कि यह दोष तुम्हारा है या उसका ?
लाघवम्
लघु यदुच्चैर्नयसे गुरुञ्च, नीचस्तुले ! ऽयं तव दोष उक्तः । लघुत्वमुच्चैर्गमनस्य हेतुः,
किन्नेति शिक्षेत जनस्ततोऽपि ॥११॥ हे तुले ! तुम लघु (हल्की) वस्तु को ऊपर और गुरु (भारी) वस्तु को नीचे ले जाती हो, यह तुम्हारा दोष है ।
तुला ने कहा- अरे ! मेरे इस कार्य से क्या जनता इतना भी नहीं सीख सकती कि लघुता (हल्कापन) ऊपर जाने का हेतु है ?
विवेक
पयोधरस्य संततिस्तता . सरोवरादिकहठात् स्वमध्यगापि यन्निरर्थक बहिष्कृता। प्रयोजनं विनाप्यहो धृताम्बुराशिना स्वयं, .
परः परः स्वक: स्वकः प्रतीयते ततो जनैः ॥१२॥ मेघ ने विपुल धाराओं से पानी बरसाया। सरोवर ने उस पानी को लिया किन्तु जो निरर्थक था उसे बाहर ढकेल दिया। समुद्र ने यह देखा। उसने बिना
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