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३२ अतुला तुला
जगदानंद विधायी, परोपकाराय जगति तुल्यो तस्माद् गर्जाम्यहं
तव
न
समुद्र ने कहा- 'मेघ ! जगत् को आनन्दित करने वाले, परोपकार करने में अत्यन्त पटु तुम भी तो मेरे ही पुत्र हो । इसीलिए मैं गर्जन करता हूं । मेरा गर्जना ब्यर्थ नहीं है ।
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मम
चतुरतरः ।
तनुजः,
मुधा ॥४॥
(वि० सं० १६६८ माघ — - मे लूसर )
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