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अतुला तुला
कस्यचिदेवं
वचन
श्रवणात् तरणिर्जगाम सहसाऽस्तम् ।
नलिनेन,
संकुचितं
गतमन्यत्र
द्विरेफे ||४||
किसी दुर्जन व्यक्ति के ये वचन सुनकर सूर्य अस्त हो गया, कमल सिकुड़ गया और भ्रमर अन्यत्र चला गया । ( यह देख दुर्जन व्यक्ति अत्यन्त प्रसन्न हुआ ।)
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विरं
सोढमनीश,
इव रविरुदितः प्रकाशते कमलम् । गुजारवति,
भृङ्गो
निष्फलस्तन्मनोरथतरुः ।। ५ । 1
विरह को सहने में असमर्थ होता हुआ सूर्य पुनः उदित हुआ, कमल खिल उठा और भौंरा गुंजारव करने लगा। यह देख उस दुर्जन व्यक्ति का मनोरथ निष्फल हो गया ।
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( वि० सं० १९९८ चांपासनी )
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