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२८ अतुला तुला
न खलु न खलु विद्यामंदिरे मानवानां, मिलति कठिनकाले स्वव्रताभ्यासशिक्षा ॥७॥
समुद्र ! तुम चपल पवन के द्वारा चंचल होने पर भी अपनी मर्यादा को नहीं छोड़ते । तुम मुझे यह बताओ कि तुमने यह विद्या कहां से सीखी ! आज के विद्यालयों में मनुष्यों को आपत्तिकाल में भी अपने व्रतों में दृढ रहने की शिक्षा कहां मिलती है ?
सलिलमपि सुधा स्याद् मन्थनेनेति तत्त्वममृतमपि विषं स्याद् रूढवृत्त्येति तथ्यम् । उदधिरपि समन्थोऽसूत रत्नानि सूक्ति:, विगलित परिवर्तः क्षारतामेष
याति ॥ ८ ॥
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मन्थन से पानी भी अमृत बन जाता है और रूढ़- - अवरूद्ध होने से अमृत भी विष हो जाता है— ये दोनों तथ्य हैं । समुद्र का मन्थन किए जाने पर उसने रत्न दिए । किन्तु जब मन्थन रुक गया, उसमें परिवर्तन होना बन्द हो गया, तब वह पड़ा पड़ा खारा बन गया ।
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(वि० सं० २०११ चातुर्मास बम्बई )
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