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________________ समुद्राष्टकम् २० अधिकता कहीं भी मधुर नहीं होती, इसका स्पष्ट उदाहरण है समुद्र और ल्पता मधुरता का सृजन करती है, इसका उदाहरण है बादल । जलनिधिर्वसुधामुपसर्पति, सुरपथं लहरी परिचुम्बति । न खलु वेत्ति कृशानुभवा हि सा, न तु नुताऽपि च शून्यगतोच्चता ॥४॥ समुद्र भूमि पर उपसर्पण करता है और तरंग आकाश को छूने लगती है। उसका अनुभव थोड़ा है । वह नहीं जानती कि दूसरे द्वारा प्रेरित किए जाने पर भी गून्य को उच्चता प्राप्त नहीं होती। नयसि नयति निम्नं यद् गुरुं त्वं तुलापि, प्रकटमहहदोषोऽयं द्वयोनिविशेषः । तदिह न तुलितो नो तोयबाहुल्ययोगात्, सदृशचरितयुग्मे कः कथं तोलयेत् कम् ।।५।। समुद्र ! जिस प्रकार तुम भारी वस्तु को नीचे ले जाते हो उसी प्रकार तुला भी भारी वस्तु को नीचे ले जाती है । दोनों में यह दोष स्पष्ट और समान है । इसीलिए तुम अभी तक तुलित नहीं हुए हो । तुम विशाल जलराशि हो इसलिए नहीं तुले, ऐसा नहीं है किन्तु जहां दोनों सहश चरित्र वाले हों, वहां कौन किसे तोले ? भवति च नववेला मूर्तसंघर्षवेला, तदिह जलधिवेला काल एव प्रमाणम् । अमितसलिलराशि कधा याति याति, दृषदि दृषदि रुद्धो दुर्लभो हि विकासः ॥६॥ यह स्पष्ट है कि नई वेला संघर्ष की वेला होती है। इसका प्रमाण है ज्वारभाटे का समय। उस समय अमित जलराशि अनेक बार तट पर आ टकराती है और चली जाती है। उसका गमन और आगमन चट्टानों से अवरुद्ध होता है। यह सच है कि विकास अत्यन्त दुर्लभ होता है। कथय कथय विद्या क्वाम्बुधे ! सावधीता, चपलपवनलोलोऽपि स्थिति लंघसे न । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003063
Book TitleAtula Tula
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1976
Total Pages242
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size8 MB
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