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७ : समुद्राष्टकम् जलकविहितो जलधिर्महान, विपुलता फलिता ललिता ततः। पुलिनबिन्दुमुपेक्ष्य स गच्छति,
किमिति हा! महिमा महतामसौ॥१॥ पानी की बूंदों ने समुद्र को महान् बनाया और उन्हीं के कारण उसकी विपुलता फलित हुई। किन्तु समुद्र बूंदों की उपेक्षा कर चला जा रहा है। क्या महान् व्यक्तियों की यही महत्ता है ?
जलनिधे ! सरितामपकर्षणं, सृजसि तेन महानिति गोयसे । वत ! निरर्थकसंग्रहपद्धति
रुपनतास्ति तया जगती दुता ॥२॥ समुद्र ! तुम नदियों का अपकर्षण कर महान् बने हो। खेद है कि निरर्थक संग्रह की पद्धति चल रही है, इसीलिए विश्व पीड़ित हो रहा है ।
बहुलता न भवेन् मधुरा क्वचिज्जलधिरेष विभाति निदर्शनम् । मधुरिमा सृजति ध्रुवमल्पतां, जलद एष विभाति निदर्शनम् ॥३॥
१. जब समुद्र की लहरें तट से टकराती हैं, तब कुछ बूंदें इधर-उधर बिखर
जाती हैं। कवि कहता है कि वह समुद्र इन बूंदों की परवाह किए बिना ही चला जाता है।
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