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२० अतुला तुला
अपने निजी व्यक्तियों के साथ निकटता पैदा करता है । यह दूसरे नहीं जान पाते।
नोपादानं व्रजति मनुजो नाम पश्यन्निमित्तं, शाब्दे लोके व्यवहृतिपरे शब्द एव प्रमाणम् । भावालोकाः प्रकृतिपटवो यात शब्दास्तदर्थम्
देवाय ज्ञपयत परां वन्दनां नम्रभावाम् ॥४॥ निमित्त कारण को देखता हुआ मनुष्य उपादान कारण को प्राप्त नहीं होता। इस व्यावहारिक और शाब्दिक लोक में शब्द ही प्रमाण हैं । इसलिए भावना के आलोक से आलोकित तथा प्रकृति से पटु शब्दो ! तुम आचार्य तुलसी के पास जाओ और हमारी विनम्र और उत्कृष्ट वन्दना को निवेदित करो।
यस्य स्वास्थ्ये निहितमतुलं स्वास्थ्यमूवं जनानां, तस्मै पुण्यं ज्ञपयत सुखप्रश्नमिष्टं नितान्तम् । शब्दाधीना वय मिह यतः साम्प्रतं दूरदेश,
तद् युष्माभिः समुचितविधि प्रातिनिध्यं विधेयम् ॥५॥ जिनके स्वास्थ्य में जनता का सम्पूर्ण स्वास्थ्य निहित है, उन पूज्य तुलसी के पास जाकर तुम सदा हमारा सुख-प्रश्न ज्ञापित करो। हम दूर प्रदेश में स्थित होने के कारण शब्दों के अधीन हैं। इसलिए शब्दो ! तुम हमारा समुचित ढंग से प्रतिनिधित्व करो।
सानन्दाः स्मो वयमिह तव प्राप्य वाणी प्रशस्तां, सोल्लासाः स्मो वयमिह मन:स्वास्थ्यमासेवमानाः। सोद्योगाः स्मो वयमिह तनुस्वास्थ्यमुच्छ्वासयन्तः,
सोत्साहा: स्मो वयमिह सदा लेखनी संस्पृशन्तः ।।६।। गुरुदेव ! आपकी प्रशस्त वाणी को प्राप्त कर हम यहां आनन्द में हैं। हम मानसिक स्वास्थ्य को धारण करते हुए उल्लसित हैं। हम शारीरिक स्वास्थ्य को सुधारने के लिए प्रयत्न कर रहे हैं। हम आज लेखनी का स्पर्श कर, आपको कुछ 'लखते हुए पूर्ण उत्साहित हो रहे हैं।
कार्य किञ्चित्प्रगतिमगमत्तेन तुष्याम एव, कार्य किञ्चिन्न कृतमपि तत्पूर्तिमानेतुमुत्काः।
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