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१४ अतुला तुला
प्रादुर्भूतोऽस्ति भूम्यां निधनकर इत: पश्य संसत्प्रकाशे, हिन्दूकोडाभिधोयं स्फुरति विधिरतो मुञ्च पत्नीरनल्पाः ॥१३॥
हे समुद्र ! तू साम्राज्यवाद को छोड़ दे। देख, आज प्रजातन्त्र न्यायदृष्टि से शासन कर रहा है। तू पर्वतों से दाय भाग (दहेज) लेता हुआ भी शांति का अनुभव नहीं कर रहा है क्योंकि तेरा चित्त संग्रह करने में उन्मत्त है। संसद् के प्रकाश में तू देख, इधर मृत्यु-कर लग गया है और उधर 'हिन्दूकोड बिल' भी चाल हो गया है । अतः तू संग्रह और बहुपत्नी-प्रथा को छोड़ दे।
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