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सद्दस्स कारागिहतंतिओ जणो, सव्वत्थ मोहं तिमिरं च
अपनिवेदणं ह
पासई ॥ २४॥
जब मैं शब्द-जाल से छूटता हूं तब सत्य का साक्षात्कार होता है । जो व्यक्ति शब्द के कारागृह का बन्दी है, वह सर्वत्र मोह और अन्धकार ही देखता हता है ।
जेणत्थि दिण्णा पवरा सुदिट्ठी, तेणत्थि मग्गो पवरोत्थ पत्तो । सुरक्खि तेण कयण्णया य, पइट्ठिओ मे तुलसी तओत्थि ||२५||
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जिसने मुझे सुदृष्टि दी, उसी ने मुझे सही मार्ग भी दिखाया। मेरी कृतज्ञ भावना भी सुरक्षित रही । मेरे हृदय में आचार्य तुलसी प्रतिष्ठित हैं ।
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( वि० २०१६ - पौष - रींछेड, मेवाड़ )
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