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२०४ अतुला तुला
नित्यानित्यादिभङ्गानविकलकलानाकलय्याप्तचक्षु{"मूर्तस्वरूपो भवतु भगवान् सिद्धये वर्द्धमानः ॥७॥
मुक्तात्मा ज्ञातपुत्र भगवान् महावीर मन की समस्त प्रवृत्तियों से मुक्त हो गए। उनकी जो स्व-आत्मा है वह सहज सुषमायुक्त तथा अव्यक्तरूप है और जो शब्दात्मा है वह व्यक्तरूप है। वे पदार्थ के नित्य-अनित्य आदि विकल्पों को समस्तरूप से ग्रहण कर आप्तदृष्टिवाले हो गए। मूर्त और अमूर्त स्वरूप वाले ये भगवान वर्द्धमान सिद्धि के लिए हों।
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