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________________ तेरापंथचतुर्विंशतिः. १७७ अभूत्स्फूर्जद्गारवनिवहभव्यो घनपथः, स्फुरद्विद्युल्लेखाविलसितवरो दिक्परिकरः । प्रपातो बिन्दूनां तृडपनयनाश्वासनमिव, प्रतिसपर्शस्तेषां विलय इव संक्लेशविततेः ॥६॥ उठने वाले अनेक गर्जारवों से आकाश गुंजायमान हो रहा था। सारी दिशाओं में बिजली चमक रही थी। लोगों की प्यास मिटाने और उनको आश्वस्त करने के लिए बूंदें बरसने लगीं। उनके स्पर्श मात्र से सारे संक्लेश विनष्ट होने लगे। (संघ से सम्बन्ध-विच्छेद कर आचार्य भिक्षु केलवा आए। विक्रम संवत् १८१८ आषाढ शुक्ला १५ को पुन: दीक्षा ग्रहण की। उपदेश देने लगे। लोगों ने सही धर्म के मर्म को समझा। उनके मानसिक क्लेश नष्ट होने लगे। प्रसारो वेगेन प्रचुरतर एव प्रववृते, कलेः क्वासौ सह्यो नियतमविचारावृतमतेः । न चोपायःप्राप्तः सखलितगतयो यद् बलवति, परं दुश्चेष्टानां भवति तदनिष्टं परहिते ॥७॥ मेघ का चारों ओर विपुल मात्रा में प्रसार हुआ। किन्तु सदा अविचार रूपी आवरण से आवृत बुद्धि वाले कलिकाल को यह सह्य नहीं हुआ। मेघ को मिटाने का उसके पास कोई उपाय नहीं रहा। यह सच है कि बलवान् व्यक्ति के आगे दूसरे सभी निरुपाय हो जाते हैं, स्खलित गतिवाले हो जाते हैं। दुष्ट व्यक्तियों की सारी चेष्टाएं दूसरों के हित में बाधा उपस्थित करने वाली होती हैं। (आचार्य भिक्षु का धर्म-प्रचार वेग से आगे बढ़ा। साम्प्रदायिक लोगों को यह अच्छा नहीं लगा किन्तु इसको रोक पाने के लिए उनके पास कोई उपाय नहीं था। फिर भी वे अनेक चेष्टाओं से उन्हें पथच्युत या पराजित करने का प्रयत्न करने लगे।) अकार्षील्लोकानां नयनयुगलीमर्धमिलितामहार्षीत्तत्स्पर्शानुभवमपि तज्ज्ञाननिपुणम् । ततो नालोकेरन् स्मितचकितदृग्वीक्षणपरा, विदध्युः प्रालेयप्रवणपृषतां स्पर्शमपि न ।।८।। कलिकाल ने लोगों की आंखें अधमुंदी कर डाली और उनके ज्ञाननिपुण स्पर्श के अनुभव का भी हरण कर डाला ताकि लोग स्फुट और चकित आंख वाले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003063
Book TitleAtula Tula
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1976
Total Pages242
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size8 MB
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