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कोऽयं सत्संगः ? १७१ तुच्छोऽपि तन्तुः किल · पुष्पयुक्तस्तिष्ठेद वरांगे वसुधाधवानाम् । मणीवके निष्क्रियतां प्रयाते,
भ्राम्येत् स नूनं चरणे जनानाम् ॥८॥ फूलों में पिरोया हुआ तुच्छ धागा भी राजाओं के मस्तिष्क पर शोभित होता है। किन्तु जब फूल मुरझा जाते हैं, तब वही धागा (कुम्हलाए हुए फूलों के साथ) लोगों के चरणों में ठोकरें खाते रहता है।
वनस्थली चन्दनशाखियुक्ता, तुच्छातितुच्छापि सुगंधिता स्यात् । श्रीखण्डवृक्षे सहसा विनष्टे,
न गन्धलेशोऽपि विभाति तस्याम् ॥६॥ जिस वनस्थली में चन्दन के वृक्ष हैं, वह चाहे अत्यन्त छोटी भी क्यों न हो, सुगंधित होगी। चन्दन के वृक्षों के नष्ट होने पर, उस वनस्थली में गंध का नामोनिशान भी नहीं मिलता।
(वि० सं २००२, पौष, मोमासर)
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