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३ : कोऽयं सत्संगः ?
सा संगतिर्याऽधमता वियुक्ता, स सज्जनो यश्च गुणी गुणज्ञः । स एव लाभश्च तयोर्यतः स्या
दात्मोन्नतिः संततवृद्धिशीला ॥१॥ वही संगति है जो अधमता से रहित है। वही सज्जन है जो गुणी और गुणज्ञ है। इन दोनों से वही लाभ प्राप्त होता है कि आत्मोन्नति सदा बढ़ती रहती है।
यद्यप्यमुष्मिन् भुवने भवन्ति, धाराधराद्याः सुजनोपमाः । तथापि तत्पाश्चिममैक्ष्य कार्य,
वयं प्रशंसां न विदध्महेऽत्र ॥२।। यद्यपि इस धरती-तल पर बादल आदि सज्जन कहलाने के योग्य हैं, फिर भी उनके अंतिम कार्य को देखकर हम उनकी प्रशंसा नहीं कर सकते।
संगृह्य पानीयममानमन्धेः, क्षारं पयोमुग मधुरं विधाय । यदूषरे तत्सलिल सुधाभ,
क्षिपेत् किमौचित्यमिहाम्बुदस्य ॥३।। मेघ समुद्र के खारे पानी को अतुल मात्रा में ग्रहण कर उसको मीठा करता है और उस अमृततुल्य पानी को ऊसर भूमि पर बरसाता है तो क्या वह बादल के लिए उचित कहा जा सकता है ?
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