SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 188
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २ : अध्ययनस्मृतिः लोका ! सज्जत कर्णकाञ्चनकुटी मातिथ्यमाधास्यते, संदोहो वचसां स्फुटाधरसरस्तीरे स्फुरंल्लीलया । दन्तावली सस्मिता, अन्तर्मोदलसत्कपोलपटली लोला लोलरसा च लोचनगता लीलारसं स्प्रक्ष्यति ॥ १ ॥ मनुष्यो ! तुम सावधान हो जाओ। अब स्फुट होठ रूपी तालाब के तीर पर लीला करने वाला वचन-संदोह तुम्हारे कानरूपी स्वर्णकुटी में अतिथि बनकर आ रहा है । अन्तर् में झांकते हुए उल्लास से दिप्त कपोलपटली, स्मितयुक्त दन्तावली और चपल जिह्वा – ये सब तुम्हारी आंखों के सामने प्रस्तुत होकर लीला रस का स्पर्श करेंगी । तद् ध्यायामि दिनं स्वजीवनधनं धन्यं महोमंगलं, श्रीकालोः करुणानिधेरमलयोः पादाब्जयोः सन्निधौ । सद्भक्त्यानतकन्धरोऽञ्ज लिवर: प्रोत्साहदीक्षापटुदीक्षां स्वीकृतवान् विरक्तहृदयो मात्रा समं पर्षदि ॥ २ ॥ मुझे उस जीवन धन, धन्य, उत्सवमय और कल्याणकारी दिन की स्मृति हो रही है जिस दिन मैं करुणा के सागर श्रीमत् कालूगणी के पवित्र चरण-कमलों आया । उस समय मेरे में दीक्षा लेने का परम उत्साह था। विरक्त हृदय वाले मैंने अपनी मां (बालूजी) के साथ भरी परिषद् में दीक्षा स्वीकार की । उस समय मैं आचार्य देव के समक्ष सिर झुकाए, हाथ जोड़े खड़ा था । तस्मिन्नैव दिनेऽथ काञ्चनमयी सा कापि वेला लसद्, यस्यामभ्यसितुं कलाकुशलतामाचारसंबन्धिनीम् । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003063
Book TitleAtula Tula
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1976
Total Pages242
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy