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सत्सङ्गाष्टकम् १६५
बभूव
तोयप्रकररजेया,
किं स्तौमि सत्सङ्गमहाप्रभावम् ||८||
विद्युत् मेघ के आश्रय में रहती है अतः वह धधकती हुई दावानल की अग्नि को शान्त करने वाली प्रचुर पानी की धाराओं से भी अजेय हो जाती है । सत्संग के महान् प्रभाव की मैं क्या स्तुति करूं ?
प्रभावतः
श्रोतुलसीप्रभूणां
,
मत्सन्निभस्तुच्छधियान्वितोऽपि । सत्सङ्ग विवेचनं च, किं स्तौमि सत्सङ्गमहाप्रभावम् ||६||
करोति
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मेरे जैसा तुच्छ बुद्धिवाला व्यक्ति भी सत्संग के माहात्म्य का विवेचन करता है, यह श्री तुलसी स्वामी का ही प्रभाव है । सत्संग के महान् प्रभाव की मैं क्या स्तुति करूं ?
( वि० सं० १९६६ पौष - मोमासर )
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