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१६४ अतुला तुला
अगण्य एवैक उदस्य बिन्दुः, सरस्वतः सङ्गमुपेत्य सद्यः । नयेत रम्यामह सिन्धुसंज्ञां,
किं स्तौमि सत्सङ्गमहाप्रभावम् ।।४।। पानी का एक नगण्य बिन्दु समुद्र का संयोग पाकर सिन्धु की संज्ञा को प्राप्त हो जाता है । सत्संग के महान् प्रभाव की मैं क्या स्तुति करूं ?
भूधातुरास्ते ननु वर्तनायां, प्रस्योपसर्गस्य सुयोजनेन। अर्थं प्रभुत्वस्य सलीलमेति,
किं स्तौमि सत्सङ्ग महाप्रभावम् ॥५॥ भूधातु का अर्थ है—होना । 'प्र' उपसर्ग के योग से वह 'प्रभु' के अर्थ को प्रकट करता है । सत्संग के महान् प्रभाव की मैं क्या स्तुति करूं?
दशार्णभद्रो वसुधाधिराजो, जिनेशितुर्वीरविभोः कृपातः । न्यपातयत् शक्रमपि स्वपादे,
किं स्तौमि सत्सङ्गमहाप्रभावम् ॥६॥ दशार्णभद्र दर्शाण देश का राजा था। उसने तीर्थंकर महावीर की कृपा से इन्द्र को भी अपने पैरों में झुका दिया। सत्संग के महान् प्रभाव की मैं क्या स्तुति करूं?
न काचिमं चापि पुनाति किञ्चिद्, यदुत्तमांगं तदपि क्षणेन । पुनाति पांशुगुरुपादसंस्था,
किं स्तौमि सत्सङ्गमहाप्रभावम् ।।७।। जिस मस्तक को स्वच्छ जल भी पवित्र नहीं करता, उसे गुरु-पाद की धूलि पवित्र बना देती है। सत्संग के महान् प्रभाव की मैं क्या स्तुति करूं?
घनाघनस्याश्रयतो हि विद्युत्, संप्रोज्ज्वलद्दावशिखिक्षयाहः ।
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