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१: सत्संगाष्टकम्
श्रीमत्तुलसीरामाणां, यशसः
सङ्गमाद हो। सद्यो
धवलितैजिग्ये, हस्तिमल्लो हि दिग्गजैः ।।१।। श्रीमत् तुलसीराम के यश के संयोग से सभी दिग्गज इतने सफ़ेद हो गए कि उन्होंने अपनी धवलिमा से ऐरावत हाथी को भी जीत लिया।
घासोऽपि गोः सङ्गमतः पयः स्याद्, ... घृतं क्रमात्तच्च पुरातनं तु ।
हतु रुजः प्रत्नतमाः प्रभूष्णुः,
किं स्तौमि सत्सङ्गमहाप्रभावम् ॥२॥ गाय के संग से घास भी दूध बन जाता है और फिर वह घी के रूप में परिवर्तित हो जाता है । घी जितना पुराना होता है उतना ही वह जीर्ण रोगों को नष्ट करने में समर्थ होता है। सत्संग के महान् प्रभाव की मैं क्या स्तुति करूं?
गुंजा नृणामंहितले भ्रमन्त्यस्तुलाप्रसंगात् तुलनां सृजन्ति । चामीकरस्यातनुमूल्यभाज.,
किं स्तौमि सत्सङ्गमहाप्रभावम् ।।३।। धुंघचियां मनुष्यों के पैरों के नीचे पड़ी रहती हैं किन्तु वे ही तराजु के प्रसंग को पाकर अमूल्य सोने को तोलने में प्रयुक्त होती हैं । सत्संग के महान् प्रभाव की मैं क्या स्तुति करूं?
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