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१५८ अतुला तुला सरसताओं का प्रतिपल शोषण कर रहा है। सभी व्यक्तियों की यह दीर्घकालीन समस्या है। इसका समाधान करने वाला वर्षा का आरम्भ प्रकृति को पुलकित और जन-जन को प्रमुदित करने वाला होता है ।
१६ : समस्या-जन: सामान्योऽयं कथमिव विजानीत सहसा
विनिद्राणे नेत्रे स्फुरति विमलज्योतिरभितः, सुषुप्तेऽपि स्वान्ते लषति विपुला शक्तिरनिशम् । विमूकेप्यारावे तरति गहनो भावजलधिः,
जनः सामान्योऽयं कथमिव विजानीत सहसा ।।१।। नींद से मूंदी हुई आंखों में भी चारों ओर विमल ज्योति प्रस्फुटित हो रही है। सूषप्त चित्त में भी सदा विपुल शक्ति प्रभासित होती है। मूक शब्दों में भी भावों का गहन समुद्र तैर रहा हैं । इन तथ्यों को सामान्य व्यक्ति सहसा कैसे जान सकता है ?.
मुदा चक्षुस्स्रावो भवति बत ! शोकेन सपदि, द्वयोरेवाधिक्ये फलति मृतिराहो ! च विचितिः । प्रसन्नास्तेनैव स्थितिरभिमता योगिभिरमुं,
जनः सामान्योऽयं कथमिव विजानीत सहसा ॥२॥ हर्ष और विषाद में आंखों से सहसा आंसू बहने लग जाते हैं। दोनों की अधिकता से मृत्यु अथवा चैतन्य-शून्यता भी हो जाती है। इसलिए योगियों ने केवल प्रसन्न स्थिति को ही मान्यता दी, किन्तु इसे सामान्य व्यक्ति सहसा कैसे जान सकता है ?
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