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१७ : समस्या-न हि कृतमुपकारं साधवो विस्मरन्ति
न हि कृतमुपकारं साधवो विस्मरन्ति, स्मृतिरतनुचिता स्यादेषभावस्तदर्थम् । उपकृतिकृतचित्तैर्बुद्धिरिच्छेदभेद
मुचितमिति मतं स्याद् विस्मृतौ वा स्मृतौ वा ॥१॥ सज्जन व्यक्ति किए हुए उपकारों को नहीं भूलते। यह स्मृति बहुत मात्रा में संचित होती है। इसीलिए यह बात कही गई है। किन्तु मनुष्य की बुद्धि उपकारपरायण व्यक्तियों के साथ अभेद चाहती है और यही मत उचित है कि अभिन्नता प्राप्त होने पर विस्मृति और स्मृति में कोई अन्तर नहीं रहता।
न हि कृतमुपकारं साधवो विस्मरन्ति, परमुपकृतिभाषा रूपमेकं न धत्ते । उपकृतिनिपुणतिच्छेदमाधायसूचि
रुपकृतिपटु यातिच्छेदमापूर्य सूत्रम् ॥२॥ सज्जन व्यक्ति किए हुए उपकारों को नहीं भूलते किन्तु उपकार की परिभाषा एक-सी नहीं होती। उपकार करने में निपुण सूई छेद करती है और उपकार करने में पटु धागा उस छेद को भर देता है।
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