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________________ १५० अतुला तुला वायु और आतप । ये अपना मत किसको (सुभिक्ष को या दुभिक्ष को) दंगे, यह हम नहीं जानते। [वि० सं० २००५ पौष शुक्ला ५, छापर] ९ : समस्या-कियच्चित्रं वाग्मी भवति बत! मूकोऽपि मनुजः कियच्चित्रं वाग्मी भवति बत ! मूकोऽपि मनुज:, स्वकश्लाघाकाले वितथवचनेप्यन्धनयनः । निरुद्धा स्याद वाणी परगुणकथायां न विदितं, क्व दोषो जिह्वायां दति मनसि वा को भिषगहो ॥१॥ कितने आश्चर्य की बात है कि मनुष्य अपनी झूठी प्रशंसा करने में अन्धा होकर, मूक होता हुआ भी वाचाल हो जाता है । दूसरों की प्रशंसा करने में उसकी वाणी रुक जाती है। न जाने यह दोष जिह्वा में है या दांतों में या मन में ? आश्चर्य है, इसका चिकित्सक कौन हो सकता है ? कियच्चित्रं वाग्मी भवति बत ! मूकोऽपि मनुजः, क्वचिल्लोके प्रेयान् ध्रुवमवसरोऽनेकचरणः । स्वके दोषेऽदोषे प्रियति परिपाट्याप्यपरथा, परेषां स्याद्वादः स्फुरति सकलायामपि दिशि ।।२।। यह कितना आश्चर्य है कि मनुष्य मूक होता हुआ भी वाचाल हो जाता है। इस संसार में अनेक गतियों से चलने वाला अवसर ही प्रिय होता है। मनुष्य अपने दोष और अदोष-दोनों में राग रखता है और दूसरों के दोष और अदोषदोनों में द्वेष रखता है। लगता है सभी दिशाओं में स्यादवाद स्फुरित हो रहा है। कियच्चित्रं वाग्मी भवति बत ! मूकोऽपि मनुजः, चिकित्सावैविध्यं विविधपरिणामाश्च तनवः । तदेतच्चित्रं स्यात् परममिह वाचामधिपतिभवन्नर्थी तत्र स्खलितवचनोऽसन्नुतिविधी ॥३॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003063
Book TitleAtula Tula
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1976
Total Pages242
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size8 MB
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