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८ : समस्या - मेघे वर्षति वेगवाहिनि कथं दौभिक्ष्यसंभावना ?
मेघे वर्षति वेगवाहिनि कथं दौभिक्ष्यसंभावना ? कुब्जो दातूकरः स्वदक्षिणपथे शक्ति न चालोकयन् । वामे शक्तिरवातरत् परमसौ वामश्चरेत्तत्कथं, द्वन्द्वं पाणिगतं प्रसारमनयद् बुद्धावपि प्रायशः ॥ १ ॥
वेगवान् मेघ के बरसने पर दुर्भिक्ष की सम्भावना कैसे हो सकती है ? अपने दक्षिण मार्ग को शक्तिहीन होता देखकर दान देने वाला हाथ कुब्ज हो गया । सारी शक्ति वाम मार्ग में अवतीर्ण हो गई, पर बायां हाथ दान कैसे दे सकता है ? हाथों का यह द्वन्द्व प्रायः मनुष्यों की बुद्धि में भी समा गया है । इसलिए वेगवान् मेघ के होने पर भी दुर्भिक्ष सम्भव हो रहा है ।
दौ भक्ष्यसंभावना ?
कूलंकषाभिस्तथा ।
मेघे वर्षति वेगवाहिनि कथं मर्यादाक्रमणं कृतं जलमुचा दृष्ट्वैतां स्वपितु: क्रियामनुचितां धान्यैश्च लज्जानतैरात्मानो जहिरे ततः कथमसी प्रश्नो घटां प्राञ्चति ? || २ ||
वेगवान् मेघ के बरसने पर दुर्भिक्ष की सम्भावना कैसे हो सकती है ? किन्तु जब बादल ने बरसने में मर्यादा का अतिक्रमण किया तो नदियों में बाढ़ आ गई और तब उन्होंने भी मर्यादा का उल्लंघन कर डाला । उगे हुए धान्यों ने अपने पिता-माता (बादल और नदी) का यह अनुचित कार्य देखा । तब लज्जा से नत होकर उन्होंने अपने आप का त्याग कर दिया, वे नष्ट हो गए। इसलिए यह प्रश्न कि मेघ के बरसने पर दुर्भिक्ष नहीं होता, उचित नहीं है ।
मेघे वर्षति वेगवाहिनि कथं दौभिक्ष्यसंभावना ? ज्ञातं नेत्यपि किं प्रणालिरियकं पूर्णा प्रजातंत्रिणी । भूवातातपनादयः परिषदः सर्वे सदस्या अमी, दास्यन्ते किल काञ्च सम्मतिमिदं तत्त्वं न विद्मो वयम् ||३||
वेगवान् मेघ के बरसने पर दुर्भिक्ष की सम्भावना कैसे हो सकती है ? किन्तु तुमने यह नहीं जाना कि ( दुर्भिक्ष होना या सुभिक्ष होना) यह सारा पूर्ण प्रजातंत्र प्रणाली पर आधारित है । इस प्रजातंत्र परिषद् के सदस्य हैं-भूमि,
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