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१४६ अतुला तुला
सिन्दूरबिन्दुविधवाललाटे,
प्रत्यक्षमत्र प्रबलं प्रमाणम् ॥३॥ मन में जैसा विचार अंकित होता है, आंखों से मनुष्य वैसा ही देखता है । इसका प्रत्यक्ष और प्रबल प्रमाण है-विधवा के ललाट पर लगा हुआ सिन्दूर का लाल बिन्दु।
पत्युवियोगाश्रुसरित्प्रवाहप्रक्षालिते वर्मणि नैकशोऽपि । स्वेदोदबिन्दुद्रविते क्व कल्प्यः,
सिन्दूरबिन्दुविधवाललाटे ॥४॥ पति के वियोग के कारण पत्नी की आंखों से आंसूओं की नदी बह रही है। अनेक बार उसके प्रवाह से सारा शरीर प्रक्षालित हो रहा है और पसीने की बूंदों से भी वह द्रवित हुआ है। ऐसी स्थिति में यह कल्पना कैसे की जा सकती है कि विधवा के ललाट पर सिन्दूर का बिन्दु है ?
सिन्दूरबिन्दुविधवाललाटे, न केन साक्षेपमपेक्षितोस्ति ? भाले स्वकेऽन्यायविजृम्भिबिन्दु
न केन साक्षेपमुपेक्षितोस्ति ? ॥५।। विधवा के ललाट पर सिन्दूर का बिन्दु है-इसको आक्षेप-सहित किसने नहीं देखा ? अपने स्वयं के ललाट पर अन्याय का बिन्दु विकसित हो रहा है, फिर भी किस व्यक्ति ने आक्षेपपूर्वक इसकी उपेक्षा नहीं की ?
[वि० सं० २००५ कार्तिक कृष्णा ७, छापर]
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