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आशुकवित्वम् १४७
त्रिफला ने खरल से कहा - अरे ! तुम चूर्ण बनाने में इतनी निपुण क्यों हो ? इसके उत्तर में त्रिफला की समान प्रकृति वाले खरल ने कहा- तुम कठोर और रूक्ष हो इसलिए मैं ऐसा करता हूं । त्रिफला ने कहा - अहो ! कवियों ने जो कहा वह सच है कि पर्वत पर लगी आग दीखती है पर पैरों के तलों में लगी आग नहीं दीखती । (तुम अपने आपको देखो, कितने कठोर और रूक्ष हो । )
७ : समस्या - सिन्दूर बिन्दुविधवाललाटे
सिन्दूराबन्दुविधवाललाट,
(वि० सं० २००४ पौष शुक्ला ४, सुजानगढ़)
गंगाम्बुगौरे कृतविद्रुमेयः । स्वं रक्तिमानं नयने मुखेपि, द्रष्टुः स्मयः किं प्रतिबिम्बयेत्तत् ॥ १ ॥
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गंगा के पानी की तरह गौर विधवा के ललाट पर मूंगे से भी अधिक लाल सिन्दूर का बिन्दु है | उस बिन्दु ने अपनी रक्तिमा, देखने वाले के नयन और मुख में, प्रतिबिम्बित कर दी हो, इसमें आश्चर्य ही क्या है ? अर्थात् विधवा के ललाट पर सिन्दूर का बिन्दु देखकर कोई क्रोध से लाल-पीला हो जाए - इसमें आश्चर्य ही क्या है ?
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सिन्दूर बिन्दुर्विधवाललाटे, नेयं समस्याप्यधुना समस्या । वैज्ञानिकेस्मिन् समये न जाने, वैधव्यमेवापि पलायितं क्व || २ ||
विधवा के ललाट पर सिन्दूर की बिन्दु है - यह समस्या आज समस्या नहीं है । क्योंकि इस वैज्ञानिक युग न जाने वैधव्य कहां पलायन कर चुका है !
मनसांकितः स्या
यादृग् विचारो तादृग् जनः पश्यति चक्षुषापि ।
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