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________________ समस्यापूर्तिः १४३ समेषामालिन्यं व्यपनयननैपुण्यमहितो, महामान्यो मह्यां लषति तुलसीराममुनिपः ॥५॥ __ अहो ! नवीन नीली आभावाला यह मेघ शून्य में उज्ज्वल स्थान को पाने के लिए इधर-उधर घूमता हुआ मन्द-मन्द ध्वनि कर रहा है । क्योंकि वह जानता है कि सभी प्राणियों की मलिनता को दूर करने में निपुण और जनता द्वारा पूजित, महामान्य आचार्य तुलसी इस पृथ्वी पर रह रहे हैं। (वि० सं० २००३ पौष शुक्ला ३ तारानगर) ५ : समस्या-मोदन्ते मुनयो मनोबलजुषः कष्टेष्वनेकेष्वपि आसक्तिः स्वपदानवस्थितिभयान्नासक्तिमालिंगति, शैथिल्यं शिथिलं मनश्चपलता जाता स्वयं चञ्चला। क्रोधः क्रुद्ध इवावलिप्त इव वा मानो न यान् मानयेद्, मोदन्ते मुनयो मनोबलजुषः कष्टेष्वनेकेष्वपि ॥१॥ आसक्ति स्वयं अपनी अवस्थिति के डांवाडोल होने के भय से जिनमें आसक्त नहीं होती, जिनके पास पहुंचकर शैथिल्य स्वयं शिथिल हो जाता है, मन की चपलता स्वयं चंचल हो जाती है, और क्रोध ऋद्ध तथा मान स्वयं गर्वित होकर जिन्हें सम्मान नहीं देता, ऐसे मनोबली मुनि अनेक कष्टों के आ जाने पर भी प्रसन्न रहते हैं। स्वातन्त्र्यं गुरुशासनं गुरुतरं शक्तिस्तपः प्रोत्कटमौदासीन्यपरंपरासुखमहो चेतोवरोधो जयः । किं चित्रं सकले पि कर्मणि जनादेवं कृतव्यत्यया, मोदन्ते मुनयो मनोबलजुषः कष्टेष्वनेकेष्वपि ॥२॥ मनोबली मुनि अनेक कष्टों के आने पर भी प्रसन्न रहते हैं क्योंकि उनका आचरण जनसाधारण से विपरीत होता है। वे गुरु के अनुशासन को स्वतन्त्रता, प्रकृष्ट तपस्या को शक्ति, औदासीन्य परम्परा (अनासक्ति) को सुख और अपने मन के विरोध को विजय मानते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003063
Book TitleAtula Tula
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1976
Total Pages242
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size8 MB
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