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________________ व्युदास्याब्जच्छायामुपमितिपटु व्यथकमसा, कथं कान्ते दान्ते गलितवदनाभा नववधूः ? २|| समस्यापूर्ति: १४१ पति ने ऐसा सोचा कि हमारे घर में निवास करने वाला प्रेम-सूर्य कभी अस्त नहीं होता और सुमति से आच्छन्न इस वसति में ईर्ष्या का हिम कभी नहीं गिरता । उपमा पटु कमल की कान्ति को छोड़कर यह नववधू अपने दांत और कांत प्रियतम के प्रति व्यर्थ ही म्लानमुख क्यों हो रही है ? रसः शान्तो यस्य स्पृशति हृदयाम्भोजकलिकां, न कामानाशंसेत् क्वचिदपि न चेतश्चपलयेत् । न तस्यैतत्तत्त्वं भवति खलु शोध्यं कथमपि, कथं कान्ते दान्ते गलितवदनाभा नववधूः ? ||३|| जिस व्यक्ति के हृदय कमल की कलिका को शान्त रस स्पृष्ट करता है, जो कामनाओं की आशंसा नहीं करता और जिसका मन चपल नहीं है, ऐसे व्यक्ति के लिए यह तथ्य अन्वेषणीय नहीं होता कि नववधू अपने दांत और कान्त प्रियतम के प्रति म्लान - मुख क्यों हो रही है ? ( वि० सं० २००३ पौष शुक्ला ३ तारानगर ) ४ : समस्या-कथं धीरं धोरं ध्वनति नवनीलो जलधर ? नदीं पत्युर्वेश्म प्रणयति रणन्नूपुरवां, क्षिते दूर्वाशाटीं रचयति लसन्मौक्तिककणाम् । तथाप्येवं शून्याश्रय इव ददज्जीवनमपि, कथं धीरं धीरं ध्वनति नवनीलो जलधरः ? ॥१॥ मेघ कल-कल करती हुई नदी को समुद्र की ओर प्रेरित करता है ओर मुक्त कण की आभावाली दूर्वा की शादी से सारी पृथ्वी को सज्जित करता है । वह सबको जीवन देता है, फिर भी वह आश्रय-विहीन व्यक्ति की भांति नवीन नीली आभा वाला मेघ धीरे-धीरे क्यों गर्ज रहा है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003063
Book TitleAtula Tula
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1976
Total Pages242
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size8 MB
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