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१४० अतुला तुला
साधुता को स्वीकार किया, विपुल ज्ञान प्राप्त किया, चंचलता को छोड़ा और वाणी को संयत बनाया, किन्तु जब तक आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त नहीं होता तब तक साधुता प्राप्त करने से क्या ? विपुल ज्ञान प्राप्त करने से क्या ? चंचलता को छोड़ने से क्या ? और वाणी को संयत बनाने से क्या ?
अम्बरे . स्थायिकोत्पत्तिरम्भोनिधी, धिष्ण्यकाच्छादिनी शक्तिरुध्वंगति :। चेज्जलं दास्यते नो त्वया वारिद !,
किं तया किं तया किं तया किं तया ? ॥२।। हे मेघ! तुम अम्बर में रहते हो। तुम्हारी उत्पत्ति समुद्र से हुई है। तुम्ह. . .. सूर्य को ढंकने की शक्ति है। तुम ऊंची गति करने वाले हो। इतना होने पर भी यदि तुम नहीं बरसते, तो अम्बर में रहने से क्या ? समुद्र से उत्पन्न होने से क्या ? सूर्य को ढंकने की शक्ति से क्या ? और ऊंची गति करने से क्या ?
(वि० सं० १९६८ पौष-राजलदेसर
३ : समस्या-कथं कान्ते दान्ते गलितवदनाभा नववधूः ?
वसन्ते साम्राज्यं कलयति कलावत्यनुपदं, यदुच्छ्वासा गुच्छा मधुररसलीलार्पणपराः । तरो! त्वय्येतादृक् फलवति जने चापि कलिका,
कथं कान्ते दान्ते गलितवदनाभा नववधूः ?॥११॥ कलावान् वसन्त पग-पग पर अपना साम्राज्य डाले हुए है। चारों ओर मधुर रस की लीला में अर्पित उच्छ्वास उछल रहे हैं। हे वृक्ष ! तुम्हारे जैसे फलवान्, कान्त और दान्त पदार्थ के प्रति भी यह कलिका रूपी नववधू म्लानमुख क्यों हो रही है ?
प्रतीची नाप्नोति प्रणयसविताऽस्मन्निलयगो, न चेापालेयं पतति सुमतिच्छन्नवसतौ।
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