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________________ १ : समस्या-मणे ! भावी तूर्ण पुनरपि तवातुच्छमहिमा भुजंगानां शीर्षे निवसति च यद्यप्यनुदिनं, तथापि त्वं तेषां गरलमतुलं लोप्तुमगदम् । स्वकीये नौचित्ये स्फुरति न हि रागो ध्र वमतौ, मणे ! भावी तूर्णं पुनरपि तवातुच्छमहिमा ॥१॥ हे मणे ! तुम रात-दिन सर्प के मस्तक में निवास करती हो, फिर भी तुम उसके घोर विष को नष्ट करने के लिए औषध हो। अपने अनौचित्य (सर्पदंश द्वारा प्रयुक्त विष) के प्रति भी तुम्हारा पक्षपात नहीं है। इसीलिए हे मणे ! तुम्हारी पुनः अतुल महिमा होगी। महामूल्यं रत्नं कथमपि च निन्ये जडमतिरजानस्तत्कान्ति वत ! विपदमापद्य चरति । गृहीत्वा तत्कश्चित् कुशलमतिरेवं द्रुतमवक्, मणे ! भावी तूर्णं पुनरपि तवातुच्छमहिमा ॥२॥ एक बार महामूल्य रत्न किसी मूर्ख के हाथ लग गया। वह उसकी कान्ति को नहीं जानता हुआ दुःखावस्था में घूम रहा था। एक कुशलमति वाले व्यक्ति ने उसी रत्न को प्राप्त कर कहा-मणे ! अब तुम्हारी पुनः अतुल महिमा होने वाली है। (वि० सं० १९६८ पौष-राजलदेसर) २ : समस्या-किं तया किं तया किं तया किं तया ? स्वीकृता साधुता . भूरि शिक्षा श्रिता, विप्लुतिः प्रोज्झिता संयता वाक् परम् । यावदाध्यात्मिक ज्ञानमायाति न, कि तया किं तया किं तया किं तया? ॥१॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003063
Book TitleAtula Tula
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1976
Total Pages242
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size8 MB
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