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१४ : समस्या-महाजनो येन गतः स पन्था :
जनो जनो येन गतः स पन्थाः, भवेदिदं शाश्वतमस्ति सत्यम् । तथापि लोकः विपरीतमुक्तं,
महाजनो येन गतः स पन्थाः ।।१।। जन-जन जिस मार्ग से गया है, वही पथ है-यह शाश्वत सत्य है । फिर भी लोगों ने इसके विपरीत कहा है-'महाजन जिससे गया है, वही पथ है।'
महाजनो येन गतः स पन्थाः, पुराणमुक्तं खलु लभ्यतेऽद्य । नवीनमुक्तं भविताद्य भव्यं,
राज्यं श्रितो येन गतः स पन्थाः॥२।। 'महाजन जिससे गया है, वही मार्ग है'-यह प्राचीन उक्ति है। आज की नवीन बात यह होनी चाहिए कि सत्तारूढ़ व्यक्ति जिस मार्ग से गया है, वही मार्ग है।
(मद्रास संस्कृत कॉलेज-१७-११-६८)
१५ : समस्या-अस्ति स्तः सन्ति कल्पनाः
सदा मे चंचलं चित्तं, चांचल्यं नानुभूयते। यदा ध्यानस्थितोऽहं स्या,
अस्ति स्तः सन्ति कल्पनाः ।। जब मेरा चित्त चंचल होता है तब मुझे चंचलता की अनुभूति नहीं होती। जब मैं ध्यान-स्थित होता हूं तब एक-दो-दस-सभी कल्पनाएं आने लगती हैं।
(मद्रास संस्कृत कॉलेज-१७-११-६८)
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