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१६ : समस्या-चन्द्रोदये रोदिति चक्रवाकी
भाग्योदयो भिन्नपदो विभाति, सर्वत्र साम्यं न हि तेन दृष्टम् । दृष्ट्वन्दुमुत्साहपरोऽपरः स्यात्,
चन्द्रोदये रोदिति चक्रवाकी ।। ___ सबका भाग्योदय एक-सा नहीं होता। उसमें विचित्रताएं होती हैं। चन्द्रमा को देखकर कोई प्रसन्न होता है किन्तु चक्रवाकी उसको देखकर रोने लग जाता है।
(बृहद् संस्कृत सम्मेलन, गंगाशहर २६-१२-७१)
१७ : समस्या-कथं भवेद् नो जठराग्निशान्तिः
यस्यास्ति तृष्णा सुतरां विशाला, स एव मां पृच्छति प्रश्नमेनम् । चित्रं ततः स्यादधिक किमत्र,
कथं भवेद् नो जठराग्निशान्तिः ॥ जिस मनुष्य की तृष्णा बढ़ी हुई है, वही मुझे यह प्रश्न पूछ रहा है कि पेट की आग कैसे बुझे । इससे अधिक विस्मय और क्या होगा?
(बृहद् संस्कृत सम्मेलन, गंगाशहर २६-१२-७१)
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