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१२ : समस्या-सरस्यामालस्यादिव पतति पाटीरपवनः
श्रमो विश्रामार्थी भवति यदिदानी प्रतिजनं, जनाः सर्ने खर्वं निदधतितमां गर्वमतुलम् । इयं वृत्तिः प्रादुर्भवति यदि वा चेतनजने,
सरस्यामालस्यादिव पतति पाटीरपवनः ।। आज श्रम मानो प्रत्येक मनुष्य में प्रविष्ट होकर विश्राम करने की बात सोच रहा है । सब मनुष्य निकृष्ट कोटि का अतुलनीय गर्व कर रहे हैं। यदि चैतन्यमय मनुष्यों में इस प्रकार की वृत्ति प्रकट हो रही है तो कहना होगा कि चन्दनवन का पवन सरोवर में अलसाया हुआ-सा सुस्ता रहा है।
(वि० सं० २०१५ मृग० शु० ११-१२ बनारस संस्कृत महाविद्यालय)
१३ : समस्या-न रजनी न दिवा न दिवाकरः
स्पृशति दृष्टिरियञ्च बहिर्जगत्तिमिरमस्ति तथेतरदस्ति च । स्पृशति दृष्टिरियं जगदान्तरं,
न रजनी न दिवा न दिवाकरः ॥ जब यह दृष्टि बहिर्जगत् का स्पर्श करती है तब उसे अंधकार और प्रकाशदोनों मिलते हैं । किन्तु जब वह अन्तर्जगत् का स्पर्श करती है तब वहां न रात है, न दिन है और न सूर्य।
(वि० सं० २०१५ मृ० शु० ११-१२ बनारस संस्कृत महाविद्यालय)
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