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१३२ अतुला तुला
नैकात्मता भवति काचन भद्रतायां, विद्युद् विमन्थररुचिदिवसे विभाति । सैव प्रकाशमतुलं तनुते निशायां,
चित्रं दिवापि रजनी रजनी दिवा च ॥३॥ भद्रता में कोई एकात्मकता नहीं होती। दिन में विद्युत् का प्रकाश मंद हो जाता है और वही प्रकाश रात में अत्यन्त तीव्र हो जाता है । विचित्र है-दिन में रात और रात में दिन हो रहा है।
कृष्णापि कापि किल दृष्टिरियञ्च तारा, श्वेतोन्धलो भवति यन्नयनस्य भागः । काष्ये प्रकाशपटुता तिमिरं वलक्षे,
चित्रं दिवापि रजनी रजनी दिवा च ॥४॥ आंखों का यह काला तारा देख सकता है और आंख का श्वेत भाग अंधा होता है, देख नहीं सकता। काले में प्रकाश की पटुता है और सफेदी में अंधकार है। विचित्र है-दिन में रात और रात में दिन हो रहा है ।
(रतलाम-वि० सं० २०१२ पौष कृ०६)
११ : समस्या-कर्दन्त्यमी मानवाः प्राणो नृत्यति विश्वगः प्रतिपलं सर्वान् जनान् जीवयन्, नीतेभ्रंश इहाजनिष्ट सततं सोप्यस्ति निष्प्राणितः । वायु त्यति साम्प्रतं च गगने सर्वास्वस्थास्वपि, निष्प्राणा भुवने भवन्ति सकलाः कर्दन्त्यमी मानवाः ।। यह विश्वव्यापी प्राण सब जनों को जीवन देता हुआ नृत्य करता है। किन्तु आज नीति का विनाश हो गया, इसलिए वह प्राण भी निष्प्राण हो गया। अब सब अवस्थाओं में इस नील गगन में केवल वायु नृत्य कर रही है। प्राण चला गया, केवल वायु रह गई है। जब विश्व में सब प्रदार्थ निष्प्राण हो जाते हैं, तब मनुष्य केहुनी को बजाया करते हैं ।
(वि० सं० २०१५ मृग० शु० ११-१२ बनारस संस्कृत महाविद्यालय)
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