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________________ ७: समस्या-मशकदशनमध्ये हस्तिनः सञ्चरन्ति नृपतिरपि जन: स्यात्प्राकृतो मार्गचारी, क्वचिदपि न पुराणः कल्पना चाप्यकारि । भवति जगति नेता साम्प्रतं नाम निःस्वः, मशकदशनमध्ये हस्तिनः सञ्चरन्ति ॥ राजा भी मार्ग पर चलने वाला सामान्य जन हो सकता है, ऐसी कल्पना किसी प्राचीन कवि ने नहीं की। आज संसार में नेता वही है, जो निर्धन होता हैं। कवि ने उचित ही कहा है कि मच्छर के दांतों के बीच से हाथी गुजर (उज्जैन, वि० सं० २०१२, संस्कृत सम्मेलन) ८ : समस्या-कालोकज्जलशोणिमा धवलयत्यर्ध नभोमण्डलम कालीकज्जलशोणिमा धवलयत्यधैं नभोमण्डलं, दुष्ट: कोपि सुविद्यया धवलितो जातो मनाक् सन्मना। दुष्टान् मानसिकान्निजान् प्रतिपलं भावान् विहातुं यतः, दुष्टत्वं विगलन्न वा सुजनता यद् व्याप्यमाना ध्र वम् ॥ कोई दुष्ट व्यक्ति सुविद्या से धवलित होकर कुछ उत्तम मन वाला हो गया। उसने अपने दुष्ट मानसिक भावों को छोड़ने का प्रयत्न किया। उसका दुष्टत्व विगलित हो रहा है और नई सुजनता उसमें व्याप्त हो रही है। ऐसा लग रहा है मानो काली की कजरारी अरुणिमा आधे नभ-मंडल को धवलित कर रही है। __ (उज्जन, वि० सं० २०१२, संस्कृत सम्मेलन) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003063
Book TitleAtula Tula
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1976
Total Pages242
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size8 MB
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