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५ : समस्या-मुकोऽपि कोऽपि मनुजः किमु वाक्पटुः स्यात् ?
मूकोऽपि कोऽपि मनुजः किमु वाक्पटुः स्याद् ? विद्वपतेः कथमसम्भवकल्पना वा । आत्मा विलोकित इतीह निजानुभूति
माचार्य आविरकरोन्मयि संप्रयुक्ताम् ॥ विद्वानों की यह कल्पना असम्भव नहीं है कि मूक मनुष्य भी वाक्पटु हो जाता है। मैं जब अपने आपको देखता हूं तब लगता है कि मेरे में संजोई हुई अनुभूति को आचार्य ने व्यक्त कर यह सिद्ध कर दिया कि मूक भी व्यक्त-वाक्पटु हो सकता है।
६ : समस्या-दिशि प्रतीच्यां समुदेति भानुः
मृते धवे यद् विधवा भवित्री, पुराणमेतच्च युगे नवेस्मिन् । त्यक्तः स्त्रिया स्यात्पतिरेव जीवन,
दिशि प्रतीच्यां समुदेति भानुः ॥ पति के मरने पर स्त्री विधवा हो जाती है, यह पुराने युग की बात है। आज के इस नये युग में जीवित पति भी स्त्री के द्वारा त्यक्त हो जाता है। इसीलिए आज सूर्य पश्चिम दिशा में उदित हो रहा है।
(उज्जैन, वि० सं० २०१२, संस्कृत सम्मेलन)
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