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३. समस्या-गीतं न गायतितरां युवतिनिशासु
श्रोतुं विहाय शशिनं मम गानमेणो, भूमौ समेष्यति तदा स विधुनिरङ्कः । भूत्वा तुलिष्यति मुखेन ममेति भीत्या,
गीतं न गायतितरां युवतिनिशासु ।। किसी ने पूछा कि युवती रात्रि में गीत क्यों नहीं गाती ? कवि ने कहाएक बार युवती ने सोचा जब मैं गीत गाऊंगी तब चन्द्रमा में स्थित संगीतप्रिय हरिण मेरा गीत सुनने के लिए भूमि पर आ जाएगा और वह चन्द्रमा 'निरङ्क' (निष्कलंक) होकर अपने आपकी तुलना मेरे मुंह में करेगा। इसी विचार से युवती रात में गीत नहीं गाती।
(वि० सं० १९६८ पौष-राजलदेसर)
४: समस्या न खलु न खलु वाच्यं सन्ति सन्तः कियन्तः
न खलु न खलु वाच्यं सन्ति सन्तः कियन्तो, भणितिरिति पुराणा शीघ्रगामी क्षणोऽयम् । जगति विसृमरोऽभूत् संघ आणुव्रतोऽयं,
भवतु तवकपृच्छा सन्त्यसन्तः कियन्तः ।। अब ऐसा मत कहो कि सन्त कितने हैं ? यह कथन बहुत पुराना हो चुका है । आज का क्षण अत्यन्त शीघ्रगामी है । अणुव्रतसंघ (आन्दोलन) सार जगत् में फैल चुका है, अतः अब तुम यह पूछो कि इस दुनिया में असन्त कितने हैं, न कि सन्त कितने हैं।
(वि०सं० २०१० माघ-राणावास)
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