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३८ : बाहुबली शक्तिर्व्यक्ति याति बाहुद्व येन, ज्ञानालोको मस्तकस्थो विभाति । आलोकानां माध्यमं चक्षुरेतत्,
मोहाऽभावो व्यज्यते पुंस्कचिन्हैः ॥१॥ मनुष्य अनन्त शक्ति का स्रोत है। उसकी मुख्य शक्तियां चार हैं-ज्ञान, दर्शन, वीर्य और पवित्रता। मनुष्य के शरीर में इन चारों शक्तियों की अभिव्यक्ति के चार स्थान हैं
१. ज्ञान का स्थान है—मस्तक । २. दर्शन का स्थान है-चक्षु । ३. वीर्य का स्थान है-बाहुद्वय । ४. पवित्रता का स्थान है—पुंस्कचिह्न ।
शक्तिः समस्ता त्रिगुणात्मिकेयं, प्रत्यक्षभूता परिपीयतेऽत्र । स्फूर्ताः स्वभावाः सकलाश्च भावा:,
मूर्ती इहैवात्र विलोक्यमानाः ॥२।। आज हम त्रिगुणात्मिका शक्ति-ज्ञान, दर्शन और पवित्रता का साक्षात् अनुभव करते हुए बाहुबली की इस विशालमूर्ति को आंखों से पी रहे हैं। यहां सारे स्वभाव और भाव स्फूर्त और मूर्त-हुए से लगते हैं ।
स्वतंत्रतायाः प्रथमोस्ति दीपः, नतो न वा यत्स्खलितः क्वचिन्न । त्यागस्य पुण्यः प्रथमः प्रदीपः,
परंपराणां प्रथमा प्रवृत्तिः ॥३॥ महान् बाहुबली स्वतन्त्रता के प्रथम दीप थे । वे न तो कहीं झुके और न कहीं स्खलित हुए । त्याग के वे प्रथम प्रदीप और परम्परा-प्रवर्तक के अग्रणी थे।
समर्पणस्याद्यपदं विभाति, विसर्जनं मानपदे प्रतिष्ठम् ।
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