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१२२ अतुला तुला
पद्भ्यां विहारं विदधन् मुमुक्षुः, प्रासादमध्ये स्थितिमान्नरेशः । यद् वायुयाने विदधच्च यात्रां,
त्रिसंगमं पुण्यमिदं विभाति ॥२॥ . आचार्यश्री मुमुक्षु हैं। वे भूमि का स्पर्श कर चलते हैं। नरेश प्रासाद में रहते हैं और तीसरे ये शुभकरणजी दसानी हैं, जो वायुयान से यात्रा करते हैं। इस प्रकार भूमि (आधार), मध्य और ऊर्ध्व-इन तीनों का यह संगम है ।
(त्रिवेन्द्रम्-राजप्रासाद १८-३-६९)
३६ : समाधि
ध्यानयोगं समालंब्य, ब्रह्मानन्दोनुभूयते । यस्य ध्यानपदं नास्ति,
नानन्दस्तस्य जायते ॥१॥ ध्यान-योग के आलंबन से ब्रह्म के आनन्द का अनुभव प्राप्त होता है। जो ध्यान में आरूढ नहीं है, उसे आनन्द की अनुभूति नहीं हो सकती। (७-४-६६ अलनूर में 'सिद्धाश्रम' के स्वामी निर्मलानन्दजी के गुरु
ब्रह्मानन्दजी के समाधि-स्थल पर)
३७ : मैसूर राजप्रासाद
आचारवन्तः स्वयमुद्वहन्ति सदा प्रचारं प्रथयन्ति तस्य ।
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