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आशुकवित्वम् ११७ द्वारा विकल्पनीय हैं । सत्य के द्वारा लब्ध सापेक्ष भावों के प्रति विकल्पमात्र से ही प्रवृत्ति होती है।
स्यात्सप्तभङ्गी विशदा विबोधे, भेदानशेषान् परिकल्पयन्ती। अनन्तभेदा अपि संगृहीताः,
समस्यमानाश्च विविच्यमानाः ।।७।। समग्र भेदों की परिकल्पना करने वाली यह सप्तभंगी ज्ञान के लिए विशद उपाय है। इसके द्वारा वस्तु के समस्यमान और विविच्यमान अनन्त धर्म संगृहीत हो जाते हैं। . (२४-४-६८ डेक्कन कालेज, पूना में श्री श्रीनिवास शास्त्री द्वारा प्रदत्त विषय)
३१ : कलाक्षेत्र
सरस्वतीयं वरदा विभाति, आचार्यवर्यावरतो विभान्ति। कक्षावलीयं ललिता मनोज्ञा,
कलाकलापः कुरुते प्रमोदम् ॥१॥ इधर सरस्वती की प्रतिमा और इधर आचार्य तुलसी विराजमान हैं । यह कक्षावली ललित और मनोज्ञ है । यहां का सारा कलाकलाप प्रमुदित हो रहा है।
चित्तं कलायां ललितं प्रसन्नं, कलाविदां कान्ततरः स एव । न षोडशीं नाम कलां च सोर्हेत्,
चित्तं विलुप्तं वरिवति यस्य ।।२।। कलाविदों में वही श्रेष्ठ है जिसका मन कलाओं से ललित और प्रसन्न हो
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