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________________ ११४ अतुला तुला प्रकम्प एवात्मनि जायमानः, चिरंन चिन्ता परिलक्ष्यतेऽत्र || ३ || भूमी का कंपन कहीं एक क्षेत्र में हुआ है, किन्तु सभी व्यक्ति इससे चिन्तित हो गए हैं । किन्तु आत्मा में सतत प्रकम्पन हो रहा है, इसकी कोई चिन्ता परिलक्षित नहीं हो रही है । क्रोधस्य कम्पश्च तथैव माया, प्रभाति । परानुभूति न तत्र ॥ ४ ॥ जहां निरन्तर क्रोध, माया, लोभ, गृद्धि और परानुभूति के प्रकम्पन हो रहे हैं, वहां भूकम्प कैसे नहीं होता ? Jain Education International प्रकम्पमाना नितरां लोभश्च गृद्धिश्च भूकम्प एवास्ति कथं असत्प्रवृत्तिर्मनुजस्य वृद्धा, पापस्य चौर्यस्य महान् प्रयत्नः । व्यापारकार्येऽपि तथा प्रवृत्तिः, स्याच्चौर्य कार्यानुगता बहूनाम् ॥५॥ आज मनुष्य में असत् प्रवृत्ति बढ़ रही है । पाप और चोरी का महान् प्रयत्न हो रहा है । व्यापार में भी चोरी की प्रवृत्ति वृद्धिगत हो रही है । च लोकमध्ये, लंचाग्रहोप्यस्ति विश्वासघात; प्रबलोस्ति पुंसाम् । तथापि भूकम्प इहास्तु मामा, केयं प्रवृत्तिः खलु भाति पुंसाम् ॥६॥ लोगों में रिश्वत और विश्वासघात की प्रबलता है । फिर भी लोग चाहते हैं कि 'भूकम्प न हो,' 'भूकम्प न हो' । मनुष्यों की यह कैसी प्रवृत्ति ? नात्मा विशुद्धो भवितास्ति यावत्, न कर्म शुद्धं खलु विद्यमानम् । तावत् प्रकम्पो भवितास्ति रक्षां कथं नाम करोतु नूनम् देवः ॥७॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003063
Book TitleAtula Tula
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1976
Total Pages242
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size8 MB
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