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________________ ११२ अतुला तुला 'अपरा और परा विद्या' तथा 'भूकम्प से लोगों का संरक्षण' – इन विषयों पर आप संस्कृत काव्य में अपने अभिप्राय व्यक्त करें । विषयपूर्ति - अपरा - परा विद्या परापरत्वेन विभज्यमाना, विद्याद्वयीयं विदुषां समस्ति । परत्वमेतत् प्रियतामुपैति, केषांचिदेवाप्यपराsत्र विद्या ॥ १ ॥ विद्वानों में दो विद्याएं सम्मत हैं—परा और अपरा । इस संसार में कुछेक मनुष्यों को पराविद्या प्रिय होती है और कुछेक लोगों को अपरा विद्या प्रिय होती है । ये सूक्ष्मभावा मनुजा भवन्ति, सूक्ष्मां परां ते सततं स्पृशन्ति । ये स्थूलदृष्टि श्रितवन्त एव, विद्या हि तेषामपरा विभाति ॥ २ ॥ जो मनुष्य सूक्ष्म विचार वाले हैं, वे सतत परा विद्या का स्पर्श करते हैं और जो स्थूल दृष्टि वाले हैं, वे अपरा विद्या का आश्रय लेते हैं । Jain Education International विशदत्वमाप्ता । आत्मास्ति दृष्टो विबुधैः प्रकामं, दृष्टिश्च येषां अध्यात्मभाजो मनुजा विशिष्टाः, परासु विद्यासु भूशं यतन्ते ||३|| जिनकी दृष्टि विशदता को प्राप्त हो गई है, उन विबुधों ने आत्मा को देखा है । जो मनुष्य विशिष्ट रूप से आध्यात्मिक होते हैं, वे परा विद्याओं में अत्यधिक प्रयत्नशील रहते हैं । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003063
Book TitleAtula Tula
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1976
Total Pages242
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size8 MB
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