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________________ तावन्न भेदस्य भवेद् विलोप:, शब्देन लोकाः सकला विभक्ताः ॥३॥ जब तक ज्ञान शब्दगत प्रकाश में सारे लोगों को ले जाता रहेगा, तब तक भेद नहीं मिट सकता । सारे लोग शब्दों के माध्यम से ही बंटे हुए हैं । आत्मप्रकाशी भविता प्रबोधः, वैशद्यमुपाश्रिताऽसौ । दृष्टिश्च प्रत्यक्ष बोधे रममाण एष, भेदं न कुत्राऽपि करोतु सत्ये ॥४॥ जब मनुष्य का प्रबोध आत्म-प्रकाशी और दृष्टि विशद होगी तब वह प्रत्यक्ष ज्ञान में विचरण करता हुआ सत्य को कभी विभक्त नहीं करेगा । आशुकवित्वम् १११ आरोपबुद्धिर्गलिता यतः स्यात्, ततो मिथः स्याद् मिलनं चवार्त्ता । स्वतन्त्र भावोऽपि समन्वयस्यैष विचारकार्ये, महानुपायः ।। ५॥ समन्वय के ये तीन महान् उपाय हैं १. एक-दूसरे पर आरोप लगाने की वृत्ति का अभाव । २. परस्पर मिलन और वार्ता । ३. विचार और कार्य में स्वतन्त्रता । Jain Education International (१४-४-६८ – तिलक विद्यापीठ, पूना) २६ : विषयद्वयी १४-४-६८ को तिलक विद्यापीठ, पूना में एक पंडित ने मुनिश्री को विषय देते हुए यह श्लोक कहा अपरा वा परा विद्या, भूकम्पाद् रक्षणं नृणाम् । छन्दसा संस्कृतेनात्र, स्वाभिप्रायः समर्थ्यताम् ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003063
Book TitleAtula Tula
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1976
Total Pages242
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size8 MB
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