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________________ ११० अतुला तुला भूमि विशाल है । उससे समुद्र विशाल है। समुद्र से आकाश और आकाश से ईश्वर विशाल है। किन्तु भक्त का चित्त ईश्वर से भी विशाल है। क्या यह संसार में आश्चर्य नहीं है ? (१४.४-६८-तिलक विद्यापीठ, पूना) २८ : सामञ्जस्य विषय तत्त्वज्ञानस्य भेदानां सामञ्जस्यं कथं भवेत् ? तत्त्व-ज्ञान में भेदों का सामंजस्य कैसे हो ? विषयपूर्ति भेदोऽस्ति बुद्धौ न चिदीहभेदोऽभेदेपि भेदं वयमाश्रयामः। बुद्धिं तिरस्कारपदं नयामः, समन्वयोऽयं सुलभोस्ति सर्वः ॥१॥ भेद बुद्धिगत है, चैतन्यगत नहीं। हम अभेद में भी भेद को स्वीकार करते हैं । यदि हम बुद्धि को छोड़ दें, तो सारा समन्वय सुलभ हो जाता है। सत्यं द्वयं नास्ति कदापि लोके, तदस्ति बुद्धौ च विभज्यमानम् । अतिक्रमं बुद्धिगतं विधाय, भेदस्य मूलं परिपोषितं स्यात् ।।२।। संसार में सत्य दो नहीं होता। बुद्धि में प्रवेश पाकर वह सत्य विभक्त हो जाता है । बुद्धिगत-विभक्त-सत्य का सहारा लेकर ही भेद की जड़ें परिपुष्ट होती हैं। ज्ञानं यदा शब्दगतं प्रकाशं, जनानशेषान नयमानमस्ति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003063
Book TitleAtula Tula
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1976
Total Pages242
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size8 MB
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