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आशुकवित्वम् १०७ दृष्टादृष्टे यदिह तुलनाधीयते तहि दृष्ट,
नादृष्टस्याहति किल कलां षोडशीं चापि विश्वे ॥२॥ पहाड़ को कुरेदकर बनाए गए मकानों की पंक्ति हमने देखी थी। किन्तु वृक्ष के स्कन्ध को छीलकर एक उटज का निर्माण, हमारे लिए अदृष्टपूर्व था। दृष्ट और अदृष्ट में यदि तुलना की जाए तो जो दृष्ट है वह अदृष्ट के सोलहवें भाग में भी नहीं आ सकता।
(घोलवड-~-महाराष्ट्र-२०-१२-६७)
२६ : अहिंसायां अपवादः
दुर्बलत्वं भवेद् यत्र, तत्रापवादकल्पना। प्रबलत्वं यदा स्वस्या
पवादा: फल्गुतां गताः॥१॥ जहां दुर्बलता होती है वहीं अपवाद की कल्पना होती है। जहां अपनी प्रबलता होती है वहां अपवाद निरर्थक हो जाते हैं।
अहिंसाकाशरूपेण, सर्वत्रास्त्येकरूपगा। दुर्बला जायते भित्तिः,
विवरं जायते तदा ॥२॥ अहिंसा आकाश की भांति सर्वत्र एक-रूप है । जब भींत दुर्बल होती है, तब उसमें छेद होता है।
भित्तो विवरभावोऽपि, न च स्वाभाविको भवेत्। नापवादस्य चर्चाऽपि, क्रियते श्रूयते क्वचित् ॥३॥
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