________________
१०४ अतुला तुला
प्रभो ! मैं समस्त दोषों से विरक्त और आपके चरणों में अनुरक्त हो जाऊं तथा मेरे सभी पाप नष्ट हो जाएं और मैं आपके महान् चरण-युगल में नत हो जाऊं।
मैत्र्यममित्रभावेषु, मृदुता सकलेष्वपि । अवक्तव्ये ध्र वं मौन
माप्तं स्यात्त्वत्प्रसादतः ॥ २॥ प्रभो ! मैं आपकी कृपा से अमित्र भाव में भी मैत्री, सभी जीवों के प्रति मृदुता और अवक्तव्य के प्रति मौन रहूं।
(वि० सं०-२०२३ दीपावली, बीदासर)
२४ : मणिशेखर चोर
सत्यं गुणानामिह मातृभूमिरसत्यमाधारशिलाऽगुणानाम् । सत्यस्य पूजा परमात्मपूजा,
सत्यात् परो नो परमेश्वरोऽस्ति ॥१॥ मुनि ने मणिशेखर से कहा-'सत्य गुणों की मातृभूमि है और असत्य अगुणों की आधारशिला। सत्य की पूजा परमात्मा की पूजा है । सत्य से बढ़कर कोई परम ईश्वर नहीं है।'
चौर्यं करिष्यामि मुने ! नितांतं, वक्ष्यामि सत्यं मनसापि वाचा। त्यक्तुं न चौर्यं प्रभवामि साधो!, .
वक्तुं परं सत्यमहं समर्थः ।।२।। मणिशेखर ने मुनि से कहा--'मैं चोरी अवश्य करूंगा किन्तु मन और वाणी से सदा सत्य बोलूंगा । प्रभो ! मैं चोरी छोड़ नहीं सकता किन्तु सत्य बोलने में समर्थ हूं।'
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org