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२१ : लोकतन्त्र का उदय
आत्मानुशासनं यत्र, प्रामाणिकत्वमाशये । . सापेक्षता सहिष्णुत्वं, व्यक्तेः स्वतंत्रता स्फुटम् ॥१॥ तत्रोदयं व्रजत्याशु, लोकतन्त्रञ्च पुष्यति । फलान्यस्योपजायन्ते,
व्यवहारस्पृशामपि ॥२॥ जहां आत्मानुशासन, प्रामाणिकता, सापेक्षता, सहिष्णुता और व्यक्तिस्वातन्त्र्य है, वहां लोकतन्त्र का उदय और विकास होता है । लोकतन्त्र के फल व्यापारियों को भी प्राप्त होते हैं।
विधीनां पालनं तत्र, कर्त्तव्यस्य प्रपालनम् । स्वयमुत्तरदायित्वं, विश्वासोऽपि परस्परम् ॥३॥ समानोवसरः पुंसां, लब्धो भवति सादरम् । अन्यथा लोकतन्त्रस्य,
विच्छेदो जायते ध्रुवम् ॥४॥ लोकतन्त्र में कानूनों का पालन, कर्तव्य-परायणता, स्वयं का उत्तरदायित्व, परस्पर विश्वास, सभी मनुष्यों को समान अवसरों की प्राप्ति-ये आवश्यक होते हैं । अन्यथा लोकतन्त्र का निश्चित ही विच्छेद हो जाता है।
(दिल्ली कान्स्टीट्यूशन क्लब, वि० सं० २०२१)
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