________________
६२ अतुला तुला
प्रकाशपुत्री यमुना तदास्त, प्रकाशपुत्र्या विहितं विधेयम् । विलीनमस्तित्वमहत्त्वपूर्ण,
विधाय कार्य विहितं प्रकाश्यम् ।।२।। यमुना प्रकाश की पुत्री है। प्रकाशपुत्री द्वारा जो कृत है वह सबके लिए करणीय है। उसने अपने अंहता से पूर्ण अस्तित्व को विलीन कर प्रकाशोचित कार्य किया है।
व्योमापगा स्वगिनदी पवित्रा, संप्राप्य पानीयविशालराशिम् । न खर्वगवं वहते कदाचि
त्तेनैव तस्याश्च समुच्छ्रयोयम् ।।३।। पवित्र और निर्मल गंगा नदी पानी की विशाल राशि पाकर भी कभी तुच्छ गर्व नहीं करती, इसीलिए उसे यह उच्चता प्राप्त हुई है।
भागीरथीयं श्रमताप्रतीक, परा प्रकाशप्रतिरूपभर्ती । एकावदाताम्बुरिहास्ति पुण्या,
परा तथा श्यामलतामुपेता ॥४॥ गंगा श्रम और यमुना प्रकाश की प्रतीक है, इसीलिए गंगा का जल धवल और पवित्र है, किन्तु यमुना का जल श्यामल है।
स्यादेतयोः संगम एष पुण्यस्तदा समानाः सहजात्मलीनाः । समन्वयं नैव नराः स्पृशन्ति,
तत्रास्ति चिन्त्यं च महद् विचित्रम् ॥५॥ जब इन दोनों का संगम हो सकता है तो समानधर्मा और स्वभावतः आत्मा में लीन रहने वाले मनुष्य समन्वय क्यों नहीं कर पाते ? यह अत्यन्त आश्चर्यकारी और चिन्त्य तथ्य है।
आणुव्रतीयं विशदास्ति गंगा, सरस्वती स्यादुपदेशवाणी ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org