SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 112
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६० अतुला तुला जो-जो व्यक्ति भाषा का विकास चाहते हैं, वे सरस और सचेष्ट हों। भाषाविदों की महिमा बढ़ने पर भाषा स्वयं गौरवशालिनी हो जाएगी। १० : क्रीडांगण यस्मिन् क्रोडा यावती स्वल्परूपा, तावत् क्रीडाप्रांगणं स्याद् विशालम् । व्रीडा वृद्धि याति येन क्रमेण, तेन क्रीडाप्राङ्गणं याति सीमाम् ॥१॥ जिसमें लज्जा का भाव जितना कम होता है, उतना ही विशाल होता है उसका क्रीड़ा-प्रांगण । जिस क्रम से लज्जा बढ़ती है उसी क्रम से क्रीड़ा-प्रांगण सिकुड़ता जाता है। क्रीडाङ्गणं स्यादुदरञ्च मातुरङ्कोपि दोलापि तथा पराणि । बालस्य सर्वाणि सदा समानि, खलू रिकाखेलनमेव यूनाम् ।।२।। बालक के लिए क्रीड़ा-प्रांगण हैं-माता का उदर, माता की गोद, झूला आदि-आदि। ये सब उसके लिए सदा समान हैं। युवकों का क्रीड़ा-प्रांगण हैशस्त्राभ्यास की भूमि । (वि० सं० २०१२ मगसर कृष्णा ६, बडनगर, हजारीबाग) ११ : संस्कृति न वार्दलैः क्षेत्रभिदा क्रियेत, नभोविहारं विदधद्भिरेभिः । एकत्वमेवाम्बुधरा भजन्ते, तथैक्यमेवास्ति च संस्कृतीनाम् ।।१।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003063
Book TitleAtula Tula
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1976
Total Pages242
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy