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५२ अतुला तुला
पीछे से आया हुआ पानी अपने वेग से पहले के पानी को ऊपर की ओर ढकेल देता है । ऊपर गया हुआ पानी फिर नीचे चला जाता है। जो निम्नवृत्ति होता है-जिसका स्वभाव नीचे की ओर जाने का होता है उसका उद्धार कौन कर सकता है ?
रोमोद्गमं द्रष्टुरिह प्रकृत्या, बिन्दूद्गमो वृद्धिमवाप्तुकामः । वातेरितो व्योमविहारहारी,
स्प्रष्टुं समस्तान् पथिकान् विलोलः ।।५।। ऊपर से गिरती हुई धारा के जलकण बढ़ने को ललचा रहे थे । देखने वालों को ऐसा लग रहा था कि मानो प्रकृति को रोमांच हो आया है। वे जलकण हवा से आकाश में उछल रहे थे और पथिकों को छूने के लिए आकुल हो रहे थे।
५ : आवर्त
आवर्त एकः पयसां विभाति, भ्राम्यन् स्वयं भ्रामयतेप्यशेषान् । स्वसीम्नि यातान्नयतेऽपि निम्नं,
यच्चञ्चलानां रचितं विचित्रम् ॥१॥ एक आवर्त पानी का होता है। वह स्वयं घूमते हुए सभी को घुमाता है। वह अपनी सीमा में आए हुए पदार्थ को नीचे ले जाता है। चंचल पदार्थ की प्रवृत्ति विचित्र होती है।
आवर्तमाना नयते । तथोवं, सोपानवीथी मनुजान् क्रमेण । लक्ष्यं स्थिरं प्राप्य जनस्तदन्तं,
गच्छेद् गति यः कुरुते तदर्हाम् ।।२।। 'दूसरा आवर्त घूमती हुई सोपानवीथि का है। वह मनुष्यों को ऊपर ले जाती
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